इन दो जिलों पर टिकी सबकी निगाहें, भाजपा-कांग्रेस के मतदाता छिटकते हैं तो बन सकते हैं नए समीकरण
विधानसभा की 70 में 20 सीटों को स्वयं में समेटे दो मैदानी जिलों हरिद्वार व ऊधमसिंह नगर में इस बार भी मतदान प्रतिशत सर्वाधिक रहा। वर्तमान परिस्थितियों में इसके कई मायने भी निकाले जा रहे हैं। माना जा रहा कि यदि इन जिलों में भाजपा व कांग्रेस से मतदाता छिटकते हैं तो इससे नए राजनीतिक समीकरण बन सकते हैं। दोनों जिलों में भाजपा व कांग्रेस के साथ ही आम आदमी पार्टी और बसपा भी मैदान में हैं। यह जिले सरकार के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आए हैं। ऐसे में सभी की नजर इन दोनों जिलों की सीटों के नतीजों पर टिकी रहेंगी।
मत प्रतिशत के दृष्टिकोण से देखें तो हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर ऐसे जिले हैं, जहां मतदाता पूरे उत्साह के साथ वोट डालते आए हैं। पिछले दो चुनावों पर नजर डालें तो ऊधमसिंह नगर में वर्ष 2017 में 76.06 प्रतिशत मतदाताओं ने मताधिकार का प्रयोग किया था, जबकि वर्ष 2012 के चुनाव में 77.98 प्रतिशत ने। इसी तरह हरिद्वार की तस्वीर पर नजर दौड़ाएं तो वहां वर्ष 2017 में 75.68 प्रतिशत और वर्ष 2012 में 75.40 प्रतिशत मतदान हुआ था। इस बार ऊधमसिंह नगर में 72.55 प्रतिशत और हरिद्वार में 74.67 प्रतिशत मतदाताओं ने मताधिकार का प्रयोग किया। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार मतदान प्रतिशत में यह दोनों जिले इस बार भी अव्वल रहे हैं।
राज्य में हुए पिछले चार विधानसभा चुनावों की तस्वीर बताती है कि यहां मुख्य मुकाबला भाजपा व कांग्रेस के बीच ही रहा है। अलबत्ता, उत्तर प्रदेश की सीमा से सटे हरिद्वार जिले की 11 और ऊधमसिंह नगर की नौ विधानसभा सीटों पर बसपा त्रिकोणात्मक मुकाबला बनाती आई है। इस बार तो आम आदमी पार्टी भी मैदान में है। बसपा का यहां एक निश्चित वोट बैंक है। इसी के बूते बसपा ने वर्ष 2002 में सात और वर्ष 2007 में आठ सीटें जीतने में कामयाबी हासिल की थी, जबकि 2012 में वह तीन सीटें ही हासिल कर पाई। वर्ष 2017 के चुनाव में उसे एक भी सीट पर जीत नहीं मिल सकी। इसके बावजूद उसकी ताकत को कम करके नहीं आंका जा सकता
इस बार मतदाताओं ने जिस तरह से चुप्पी साधे रही और राजनीतिक दल उनके मिजाज को नहीं भांप पाए, उसे देखते हुए इन दोनों जिलों पर सबकी नजर है। यदि परिस्थितियां बदली तो इन जिलों की 20 सीटों के चुनाव परिणाम महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। माना जा रहा कि यदि मतदाताओं का मिजाज बदला और वे परंपरागत प्रतिद्वंद्वियों भाजपा व कांग्रेस पर भरोसा नहीं जताते हैं तो बसपा व आम आदमी पार्टी लाभ की स्थिति में आ सकते हैं।
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