National

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने पृथ्वी को बचाने के लिए ‘डार्ट’ मिशन किया लांच ,मानव सभ्यता के अस्तित्व के लिए एक बड़ा खतरा

धरती पर निरंतर अनेक प्रकार के आकाशीय खतरे मंडराते रहते है। इस कारण अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने क्षुद्रग्रहों से पृथ्वी को बचाने की तकनीक के परीक्षण के लिए एक राकेट के माध्यम से ‘डार्ट’ (डबल एस्टेरायड रिडाइरेक्शन टेस्ट) मिशन को लांच किया है। डार्ट का लक्ष्य डाइमारफस क्षुद्रग्रह के मार्ग को थोड़ा परिवर्तित करना है। डार्ट लगभग 24 हजार किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से डाइमारफस से टकराएगा। इससे डाइमारफस का यात्र पथ कुछ मिलिमीटर ही बदलने की संभावना है। अगर यह संभव हो गया तो उसकी कक्षा बदल जाएगी। डार्ट मिशन के कार्यक्रम विज्ञानी टाम स्टेटलर के मुताबिक, ‘यह एक बहुत ही छोटा परिवर्तन लग सकता है, लेकिन एक क्षुद्रग्रह को पृथ्वी से टकराने से रोकने के लिए हमें बस इतना ही करना है।

डाइमारफस की चौड़ाई 169 मीटर के आसपास है। यह क्षुद्रग्रह अपने से बड़े एक दूसरे क्षुद्रग्रह डिडीमास की परिक्रमा कर रहा है, जो लगभग 780 मीटर चौड़ा है। डाइमारफस एक ऐसा क्षुद्रग्रह है जिससे पृथ्वी को कोई खतरा नहीं है, इसलिए इसे परीक्षण के लिए चुना गया है। इस पूरी घटना को पृथ्वी से दूरबीनों के जरिये देखा जा सकेगा। इस टक्कर की मिनिएचर कैमरा से तस्वीरे भी ली जा सकेंगी। नासा के प्रधान विज्ञानी थामस जुबुरशेन के मुताबिक, ‘हम यह जानने का प्रयास कर रहे हैं कि किसी संभावित खतरे को कैसे टाला जाए।’

करोड़ों साल पहले पृथ्वी पर डायनासोर और बड़े-बड़े प्राणियों का राज था। उनका क्या हुआ? ऐसी कौन सी घटना घटी जिसने पृथ्वी से डायनासोर और अन्य विशालकाय जीव-जंतुओं का नामोनिशान ही मिटा दिया? डायनासोर पृथ्वी से कैसे विलुप्त हो गए, इसकी कई वजहें बताई जाती हैं, लेकिन इसका सर्वाधिक मान्यता प्राप्त सिद्धांत यह है कि आज से लगभग साढ़े छह करोड़ साल पहले किसी बड़े क्षुद्रग्रह के टकराने से मची तबाही ने डायनासोर समेत पृथ्वी पर रहने वाले लगभग 75 प्रतिशत जीव-जंतुओं का हमेशा के लिए सफाया कर दिया। जिस जगह यह टक्कर हुई उसे आज दक्षिणपूर्वी मेक्सिको का युकातन प्रायद्वीप कहा जाता है। इस टक्कर की वजह से बेहद गर्म तरंगें पैदा हुईं और उन्होंने आकाश को ठोस व तरल कणों वाली गैस के बादल से भर दिया।

इसकी वजह से सूर्य के सामने कई महीनों के लिए एक काला धब्बा आ गया, परिणामस्वरूप सूर्य की रोशनी पर निर्भर पेड़-पौधे और जीव-जंतु मर गए। इसी प्रलय के चलते विशालकाय डायनासोर की तमाम प्रजातियां भी खत्म हो गईं। आम लोग क्षुद्रग्रहों से इसी वजह से खौफ खाते हैं कि जब यह करोड़ों वर्षो तक धरती पर राज करने वाले डायनासोर जैसे विशाल प्राणियों का नामोनिशान मिटा सकता है तो हम मामूली इंसान किस खेत की मूली हैं! यह एक सुपरिचित वैज्ञानिक तथ्य है कि हमारी पृथ्वी जिस पथ पर गतिमान है, वहां निर्वात या शून्य है। इस वजह से किसी अन्य खगोलीय पिंड से पृथ्वी के टकराने की गुंजाइश कम है। लेकिन आए दिन किसी क्षुद्रग्रह या धूमकेतु के पृथ्वी के आसपास से गुजरने की खबरें आती रहती हैं। इसकी क्या सच्चाई है?

क्षुद्रग्रह चट्टानों और धातुओं से बने ऐसे पिंड हैं जो मुख्यत: मंगल और बृहस्पति के बीच की ‘एस्टेरायड बेल्ट’ में पाए जाते हैं। इनका आकार सौ मीटर से लेकर एक हजार किमी तक हो सकता है। छोटे आकार के क्षुद्रग्रह को उल्कापिंड कहा जाता है। वहीं धूमकेतु हमारे सौरमंडल की बाहरी सीमा जिसे ‘ओर्ट क्लाउड’ कहा जाता है, उनमें अरबों की संख्या में पाए जाते हैं। हमारे सौरमंडल के बाकी सदस्यों की तरह क्षुद्रग्रह और धूमकेतु भी सूर्य के गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में उसकी परिक्रमा करते हैं।

नासा की एक रिपोर्ट के अनुसार सूर्य 8,28,000 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से आकाशगंगा के केंद्र की परिक्रमा कर रहा है। ऐसे में कई बार नजदीक से गुजरते किसी आकाशीय पिंड या तारे की वजह से ऐसी स्थिति बनती है कि उस तारे और सूर्य की साझा गुरुत्वाकर्षण शक्ति क्षुद्रग्रहों और धूमकेतुओं को उनके पथ से विचलित कर देती है, जिससे ये छिटक कर सौरमंडल के भीतर साढ़े चार करोड़ किमी तक पहुंच जाते हैं और पृथ्वी के लिए खतरा बन जाते हैं। हालांकि खतरा केवल 30 मीटर से ज्यादा आकार के पिंड से होता है। रोजाना 30 मीटर से कम आकार के उल्कापिंडों और धूमकेतुओं के 100 मीटिक टन टुकड़े पृथ्वी पर गिरते हैं, जिनसे कोई खतरा नहीं होता, क्योंकि ये पृथ्वी के वायुमंडल में दाखिल होते ही घर्षण की वजह से जलकर खाक हो जाते हैं।

निश्चित रूप से किसी बड़े क्षुद्रग्रह या धूमकेतु का पृथ्वी से टकराना मानव सभ्यता के अस्तित्व के लिए एक बड़ा खतरा है। ऐसे बड़े आकाशीय आक्रांताओं को ध्यान में रखते हुए अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने 1999 में ‘सेंटर फार नीयर अर्थ ओब्जेक्ट्स स्टडीज’ (सीएनईओएस) नामक एक अलग विभाग की स्थापना की, जिसका काम है- पृथ्वी से पांच करोड़ किमी के दायरे में मौजूद खगोलीय पिंडों की निगरानी करना। नासा का यह विभाग संभावित रूप से खतरनाक पिंडों को ‘पोटेंशियली हजार्डस आब्जेक्ट्स’ (पीएचओएस) के रूप में वर्गीकृत करता है।

जनवरी 2018 तक लगभग 1885 पीएचओएस को खोजा जा चुका है। इनमें से 157 ऐसे पीएचओएस हैं जिनका आकार एक वर्ग किमी से अधिक है, जबकि 1601 अपोलो वर्ग के हैं, बाकी एटेन वर्ग के आब्जेक्ट्स हैं। इन सभी पीएचओएस में से 99 प्रतिशत पिंडों से आगामी 100 वर्षो में पृथ्वी को कोई खतरा नहीं है, क्योकि इनका यात्रा पथ भलीभांति निर्धारित किया जा चुका है। लेकिन कुछ ऐसे भी क्षुद्रग्रह और धूमकेतु हैं जो अगले 100 वर्षो में पृथ्वी के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं। तमाम निगरानी के बावजूद यह निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता कि कब, कौन-सा अंतरिक्षीय आक्रांता पृथ्वी की तरफ आता हुआ प्रकट हो जाए। बीते तीन दशकों में 20-25 बार ऐसा हो चुका है, जब किसी बड़े धूमकेतु या क्षुद्रग्रह के पृथ्वी के करीब से गुजरने का पता हमें काफी बाद में चला। विज्ञानियों के मुताबिक अगर 60 मीटर आकार का भी कोई पिंड पृथ्वी से टकरा जाए तो उससे छह मेगाटन हाइड्रोजन बम की ऊर्जा के बराबर ऊर्जा पैदा होगी और इससे उत्पन्न प्रभाव हिरोशिमा पर गिराए गए परमाणु बम जैसे 500 बमों के बराबर होगा!

सोचिए अगर 10 किमी का कोई क्षुद्रग्रह पृथ्वी पर आ धमके तो क्या होगा? इससे कितनी ऊर्जा पैदा होगी? जवाब है- हिरोशिमा पर गिराए गए परमाणु बम जैसे एक अरब बमों जितना! इससे न केवल जिस स्थान पर क्षुद्रग्रह गिरेगा उसका विनाश हो जाएगा, बल्कि इस टकराव से आपदाओं की एक ऐसी श्रृंखला शुरू होगी जिससे इंसान सहित समस्त जीव-जंतुओं और पेड़-पौधों का हश्र डायनासोरों जैसा हो जाएगा। धरती के दामन पर लगे 200 से अधिक दाग (क्रेटर्स) इस बात के साक्षी हैं कि अंतरिक्ष के विनाशदूत यायावरों ने कई बार पृथ्वी से जैव प्रजातियों का नामोनिशान मिटाया है। भूगर्भिक साक्ष्यों से विज्ञानियों को यह पता चला है कि हर 260 लाख साल के अंतराल पर हमारी पृथ्वी किसी छोटे या बड़े प्रलय का सामना जरूर करती है। कई खगोल विज्ञानियों का मानना है कि हर 2.6 करोड़ साल में हमारे सौरमंडल में ऐसी परिस्थितियां (चरम गुरुत्वीय उथल-पुथल) बनती हैं, जो क्षुद्रग्रहों और धूमकेतुओं को सौरमंडल के भीतर की ओर मोड़ देती हैं।

हम जिस पृथ्वी पर शांतिपूर्वक और स्थिरता से रह रहे हैं, वह अंतरिक्ष के घुप अंधेरे में लगभग एक लाख किमी प्रति घंटे की रफ्तार से सूर्य की परिक्रमा कर रही है। इतना ही नहीं, पृथ्वी अपनी धुरी पर करीब 1600 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से घूर्णन कर रही है। सूर्य की गति की चर्चा पहले ही हम कर चुके हैं। कहा जा सकता है कि अंतरिक्ष में हमारी पृथ्वी का यात्र पथ तरह-तरह के खतरों से भरा हुआ है। हमारा ब्रह्मांड उग्र हलचलों से भरा पड़ा है, जिसमें तारे ग्रहों को निगल जाते हैं, आकाशगंगाओं का एक-दूसरे में विलय हो जाता है, ब्लैक होल आपस में टकरा जाते हैं तथा सुपरनोवा और अन्य खगोलीय पिंड घातक रेडिएशन छोड़ते हैं। कुल मिलाकर ब्रह्मांड एक बेहद हिंसक स्थान है और अंतरिक्ष के अनगिनत खगोलीय संरचनाओं की तुलना में हमारी पृथ्वी की हैसियत नाजुक, कमजोर और खतरों से भरी हुई है।

विज्ञानियों ने पृथ्वी के गर्भ में सुरक्षित जीवाश्मों के अध्ययन से यह स्पष्ट निष्कर्ष निकाला है कि हमारी पृथ्वी कभी भी खतरों से खाली नहीं रही और इसने अनेक संकटों को ङोला है। बीसवीं शताब्दी तक हम सोचते थे कि हम बहुत सुरक्षित जगह पर रह रहे हैं, लेकिन अब स्थिति पूरी तरह से बदल चुकी है। मानव जाति के लुप्त होने के कई खतरे हैं। कुछ खतरे मानव निर्मित हैं, जैसे-जलवायु परिवर्तन, परमाणु युद्ध, जैव विविधता का विनाश, ओजोन की परत में सुराख, वहीं कुछ आसमानी खतरे भी हैं, जैसे-किसी क्षुद्रग्रह या धूमकेतु से टकरा जाने का खतरा।

हालीवुड फिल्मों और टेलीविजन सीरीज, जैसे डीप इंपैक्ट, एस्टेरायड, आर्मागेडान आदि में पृथ्वी पर मंडराते आसमानी खतरे से समस्त मानव जाति पर आए अस्तित्व के संकट को बखूबी प्रदर्शित किया गया है। इन फंतासी फिल्मों में पृथ्वी को बचाने में खगोल विज्ञान और अंतरिक्ष अभियानों की अहमियत को भी दर्शाया गया है। अपनी तमाम कमियों के बावजूद ये फिल्में यह बताती हैं कि अंतरिक्ष अनुसंधान महज रहस्य, जिज्ञासा और रोमांच का विषय नहीं है, इससे मानव जाति के अस्तित्व की भी रक्षा हो सकती है। खगोल विज्ञानी लेरी नेविल के मुताबिक, ‘करोड़ों साल पहले डायनासोरों का अंत इसलिए हुआ, क्योंकि उनका कोई ‘स्पेस प्रोग्राम’ नहीं था। हमारे पास स्पेस प्रोग्राम है, इसलिए हम विलुप्त होने से बच सकते हैं।’

अंतरिक्ष विशेषज्ञों के मुताबिक निकट भविष्य में क्षुद्रग्रहों या धूमकेतुओं के पृथ्वी से टकराने की कोई आशंका नहीं है, परंतु खगोल विज्ञानियों को पृथ्वी के नजदीक मंडराने वाले आकाशीय चट्टानों से हर पल चौकन्ना रहना पड़ेगा और पहले से अपनी तैयारियों को पूरी तरह से दुरुस्त रखना होगा।

Related Articles

Back to top button