Uttarakhand

उत्तराखंड: तीरथ सिंह रावत पर इतनी जल्दी क्यों आया संकट, जानें….

जिस उम्मीद के साथ भाजपा आलाकमान ने तीरथ सिंह रावत को चुनावी वर्ष में उत्तराखंड की कमान सौंपी थी, तीरथ उस पर खरे नहीं उतर पाए। सरल, सौम्य और जनता की सुनने वाले नेता की छवि के बावजूद तीरथ अपनी बार- बार फिसलती जुबान के चलते भाजपा को राष्ट्रीय स्तर पर असहज करते रहे। उस पर वो चुनावी साल में कैडर को उत्साहित करने में भी नाकाम रहे।

फिसलती जुबान

बतौर मुख्यमंत्री अपने पहले हफ्ते में ही तीरथ महिलाओं के पहनावे पर टिप्पणी कर राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में आ गए। बाल आयोग के एक कार्यक्रम में उन्होंने रिप्ड जींस पहनने वाली महिलाओं पर टिप्पणी कर भाजपा के लिए राष्ट्रीय स्तर पर मुश्किल खड़ी कर दी। महिलाओं से जुड़ा विषय होने के कारण बॉलीवुड हस्तियों से लेकर अकादमिक जगत के लोगों ने उनकी जमकर निंदा की, आखिरकार तीरथ को विवाद शांत करने के लिए माफी मांगनी पड़ी। लेकिन इसके कुछ दिन बाद ही रामनगर में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा लॉकडाउन के दौरान मुफ्त राशन देने की योजना को ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करने से जोड़ डाला। फिर तो उनकी टिप्पणियों को लेकर कई सही गलत वीडियो सामने आने लगे, कुल मिलाकर उनकी छवि एक ऐसे नेता की बन गई जो बिना सोचे समझे कुछ भी बोल देता है।

कैडर में नहीं भर पाए जोश

भाजपा आलाकमान द्वारा मार्च में सत्ता परिवर्तन के पीछे एक वजह तत्कालीन सरकार के प्रति नाराजगी दूर करने के साथ ही भाजपा कैडर को आगामी विधानसभा चुनाव के लिए तैयार करना भी था। लेकिन तीरथ के सत्ता संभालने के कुछ दिन बाद प्रदेश में कोविड की दूसरी लहर फूट पड़ी। सरकार महामारी से निपटने में उलझकर रह गई। इस कारण सरकार न तो जनता के लिए नई योजना ला पाई नहीं सीएम भाजपा कैडर को जोश से भर पाए। हालांकि उन्होंने विधायकों के साथ ही भाजपा कार्यकर्ताओं के लिए अपने दरवाजे खोलकर रखे, लेकिन इतने भर से भाजपा उनके नेतृत्व में विधानसभा चुनाव में जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाई।

लचर प्रशासन

मुख्यमंत्री के तौर पर तीरथ अपने पूर्ववर्ती के मुकाबले ज्यादा लचर साबित हुए। उनके कार्यकाल में मंत्री विधायक, दर्जाधारी खुलकर उलझते रहे। जबकि पूर्ववर्ती त्रिवेंद्र के राज में इस मामले में एक तरह से सख्त अनुशासन देखने को मिला था। मुख्यमंत्री से लेकर मंत्रियों में हर काम के लिए पूर्व सीएम त्रिवेंद्र रावत के कार्यकाल को दोषी ठहराने की होड़ मची रही। राजनैतिक प्रतिद्वंदिता के चलते तीरथ सरकार त्रिवेंद्र सरकार के चार साल के कार्यकाल के दौरान हुए अच्छे कार्यों का उल्लेख करने से तो बचती रही, अलबत्ता कमियों पर तत्काल उंगली उठाई जाती रही। इससे कुल मिलाकर सरकार की छवि पर ही असर पड़ा।

सिचासी जमीन का अभाव

मुख्यमंत्री बनने के बावजूद तीरथ सिंह रावत अपनी सियासी जमीन पुख्ता नहीं कर पाए। यही कारण है कि वो शुरुआती तीन महीनों में खुद के लिए उपचुनाव लड़ने के लिए विधानसभा सीट तय नहीं कर पाए। उप चुनाव को लेकर उनकी सारी रणनीति हाईकमान के निर्देश पर टिकी हुई थी। तीरथ जब सीएम बने उस वक्त सल्ट की सीट रिक्त चल रही थी। इसके कुछ दिन बाद गंगोत्री भी रिक्त हो गई। लेकिन दोनों निर्वाचन क्षेत्र अपरिचित होने के कारण तीरथ किसी एक का चयन नहीं कर पाए। देरी के कारण हालात उनके लिए दिन प्रतिदिन विपरीत होते चले गए। जिस कारण उपचुनाव जीत कर राजनैतिक वैद्यता हासिल करने और आगामी विधानसभा चुनाव के लिए माहौल बनाने का मौका उन्होंने गवां दिया।

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